मोदी की लोकप्रियता
में
एक
साल
में
कमी
आई
है,
इस
सवाल
का
जवाब
न तो
पहले
आसान
था
न ही
आज
आसान
है।
अगर चुनाव जीतना ही
लोकप्रियता
का
पैमाना है तो मोदी ने
वाकई झंडे गाड़े हैं.
क्या मोदी जनता से किये
हुए
हुए
वादे
को
पूरा
कर पा रहे हैं?
जवाब होगा कि
मोदी
जीत
भी
रहे
हैं
और
चुनाव
हार
भी
रहे
हैं.
पिछले एक साल
में
मोदी
ने
कुछ
बाद
चुनाव
जीते
हैं,
कुछ
हारे
भी
हैं।
इन दिनों एक
जोक
जो
वायरल
हो
रहा
है
कि
कांग्रेस
उपचुनाव
जीत
रही
है वहीं मोदी
राज्यों
के
चुनाव
जीत
रहे
हैं।
गुजरात बचाने के
साथ
साथ
मोदी
ने
हिमाचल
भी
कांग्रेस
के
हाथ
से
छीन
लिया.
हिमाचल
के
बाद
मोदी
ने
बीजेपी
को
त्रिपुरा
ज़बरदस्त
तरीके
से
जीतवाया.
बीजेपी
गठबंधन
की
मेघालय
और
त्रिपुरा
में
भी
सरकार
बन
गई।
लेकिन इस बीच
बीजेपी
ने
क्या
हारा,
इसका
हिसाब
भी
लगा
लेते
हैं।
पंजाब में पिछले
साल
हुए
गुरदासपुर
उपचुनाव
में
बीजेपी
को
मुंह
की
खानी
पड़ी,
बीजेपी
विनोद
खन्ना
की
सीट
नहीं
बचा
पाई।
इसके अलावा अलवर
में
बीजेपी
को
करारी
हार
का
सामने
करना
पड़ा।
लेकिन सबसे बुरी
हार
तो
मिली
गोरखपुर
में,
जो
मुख्यमंत्री
योगी
आदित्यनाथ
की
सीट
थी,
जहाँ
से
वह
पांच
बार
सांसद
भी
रहे
थे.
फूलपुर
की
हार
भी
सामान्य
नहीं
थी,
जहाँ
से
उपमुख्यमंत्री
केशव
मौर्या
सांसद
थे।
बीजेपी इन
दोनों
सीटों
को
अगर
बचा
लेती
तो
मोदी
के
नेतृत्व
और
उनकी
लोकप्रियता
पर
सवाल
नहीं
उठना
था.
लेकिन
इन
दोनों
सीटों
पर
समाजवादी
पार्टी
की
जीत
ने
विपक्ष
में
जान
फूंक
दी।
इस हार
के
बाद
एनडीए
गठबंधन
के
खिलाफ
देश
भर
में
महाल
बनना
शुरु
हो
गया।
विपक्ष में
यह
संदेश
गया
कि
मोदी
को
हराया
जा
सकता
है।
2014 में
हुए
लोक
सभा
चुनाव
में
मोदी
ने
अपने
बूते
पर
बीजेपी
को
सीटें
दिलवाई
282, बहुमत से
10 ज्यादा. पिछले
चुनाव
के
मुकाबले
बीजेपी
की
सीटों
में
इजाफा
हुआ
था
166 सीटों का।
साथ ही
साथ
एनडीए
गठबंधन
का
सीटों
का
आंकड़ा
बढ़कर
हो
गया,
336।
यह भी
अपने
आप
में
गज़ब
की
उपलब्धि
थी।
अब आते
हैं,
क्या
वाकई
मोदी
अब
भी
उतने
ही
लोकप्रिय
हैं,
जितने
2014 में थे,
जवाब
होगा,
बिल्कुल
नहीं।
मोदी का
सबसे
बड़ा
वादा
था,
विदेशों
से
काला
धन
लाने
का,
जिसे
बीजेपी
अध्यक्ष
ने
जुमला
करार
दिया!
हर
साल
2 करोड़ रोज़गार
देने
के
नाम
पर,
मोदी
सरकार
की
झोली
खाली
है.
अगर
पकोड़ा
बेचना
भी
रोज़गार
है,
तो
आईआईटी,
और
प्रबंध
संस्थान
खोलने
की
ज़रुरत
ही
क्या
थी?
2019 से
पहले
अब
मैदान
काफी
खुला
हुआ
था.
अभी
चुनाव
में
एक
साल
का
समय
बाकी
है,
विपक्ष
के
चौतरफा
हमले
का
जवाब,
पिछली
सरकारों
का
हमला
करके
नहीं
दिया
जा
सकता।
मोदी को
याद
रखना
होगा
कि
वह
देश
के
प्रधानमंत्री
है,
जवाब
देने
की
बारी
इस
बार
उनकी
है,
कांग्रेस
की
नहीं।
कांग्रेस समेत
विपक्ष
में
एक
नई
उर्जा
आ
गई
है,
अब
नरेन्द्र
मोदी
के
पास
उन
नीतियों
पर
दोबारा
अमल
करने
का
वक़्त
भी
नहीं
है।